Padarth Vigyan – Darshan – Introduction
1. दार्शनिक पृष्ठभूमि
This post contains the brief description about the first chapter of Padarth vigyan that is Darshan.
Darashan are of two type :-
- Astika Darshan
Further divided into six types :-
- वेदान्त दर्शन
- सांख्य दर्शन
- वैशेषिक दर्शन
- न्याय दर्शन
- मीमांसा दर्शन
- योग दर्शन
2. Nastika Darshan
Further divided into 3 types
- Charvaka Darshan
- Jain Darshan
- Bouddah Darshan
दर्शन शब्द की निरुक्ति :
- ‘दृश’ धातु में ‘ल्युट्’ प्रत्यय करने पर दर्शन शब्द बनता है।
‘दृश्यते अनेन इति दर्शनम्’
- जो शास्त्र जीवन को यथार्थ रूप से देखने और समझने की वास्तविक दृष्टि प्रदान करता है, उसे दर्शन कहते हैं।
- दर्शन शब्द का तात्पर्य ‘द्रष्टा’ से है जोकि स्वयं कभी नहीं देखा जाता अपितु स्वयं के अस्तित्व का अनुभव किया जा सकता है।
शास्त्र :-
‘शिष्यते अनेन इति शास्त्रम्’
- मनुष्यों के लिए शुभ अशुभ कर्मों का निर्देशन करने वाला ग्रन्थ शास्त्र कहलाता है ।
दर्शन की व्यापकता :-
- महर्षि कणाद के अनुसार पदार्थ का वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग जो कि अविभाज्य हों – परमाणु है, वहीं चेतना का तत्त्व, चेतन पुरुष या परमात्मा है वही नित्य है, वही सृष्टि का निर्माणकर्ता है ।
दर्शन शास्त्रों का उद्देश्य :-
- साधारण जनसमाज इन्द्रियजन्य कामोपभोग को ही परम सुख मानता है, इसके लिए कुछ भी अच्छा बुरा करना पड़े वह करता है, किन्तु तत्वज्ञ विद्वानों का कहना है कि इन्द्रियजन्य कामोपभोग सुख-दुख मिश्रित होने के कारण त्याज्य कोटि में ही गिनने योग्य हैं।
- इसलिए आत्यन्तिक सुख की खोज और उसकी प्राप्ति के लिए तत्वज्ञ विद्वान स्वयं प्रयत्नशील रहकर दुःख के सागर में निमग्न हुए साधारण लोगों के उद्धारार्थ उसका प्रचार-प्रसार करते हैं ।
दर्शनों का श्रेणी विभाजन :-
एकत्ववाद –
- एक ही मूल तत्त्व ‘ब्रह्मा’ को मानना ।
- वेदान्त दर्शन
द्वैतवाद –
- दो मूल तत्व प्रकृति तथा पुरुष को मानना ।
- सांख्य दर्शन
त्रैतवाद –
- तीन मूल तत्व को मानना
- ईश्वर, जीव (पुरूष), प्रकृति को मानने वाले – वैशेषिक, न्याय और योग।
- अदृश्य, पुरुष, प्रकृति को मानने वाला – मीमांसा दर्शन ।